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Here you will find the lyrics of the popular song – “Sakat Chauth Pauranik Vrat Katha” from the Movie / Album – “”. The Music Director is “”. The song / soundtrack has been composed by the famous lyricist “” and was released on “” in the beautiful voice of “”. The music video of the song features some amazing and talented actor / actress “”. It was released under the music label of “”.

Sakat Chauth Pauranik Vrat Katha Lyrics In Hindi

Lyrics In Hindi

प्रथम कथा

कहते हैं कि सतयुग में राजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक कुम्हार था। एक बार तमाम कोशिशों के बावजूद जब उसके बर्तन कच्चे रह जा रहे थे तो उसने यह बात एक पुजारी को बताई।

उस पर पुजारी ने बताया कि किसी छोटे बच्चे की बलि से ही यह समस्या दूर हो जाएगी। इसके बाद उस कुम्हार ने एक बच्चे को पकड़कर आंवा में डाल दिया। वह सकट चौथ का दिन था।

काफी खोजने के बाद भी जब उसकी मां को उसका बेटा नहीं मिला तो उसने गणेश जी के समक्ष सच्चे मन से प्रार्थना की। उधर जब कुम्हार ने सुबह उठकर देखा तो आंवा में उसके बर्तन तो पक गए लेकिन बच्चा भी सुरक्षित था।

इस घटना के बाद कुम्हार डर गया और राजा के समक्ष पहुंच पूरी कहानी बताई। इसके पश्चात राजा ने बच्चे और उसकी मां को बुलवाया तो मां ने संकटों को दूर करने वाले सकट चौथ की महिमा का वर्णन किया। तभी से महिलाएं अपनी संतान और परिवार के सौभाग्य और लंबी आयु के लिए व्रत को करने लगीं।

सकट चौथ पौराणिक व्रत कथा: एक साहूकार और साहूकारनी (Sakat Chauth Pauranik Vrat Katha – Ek Sahukar Aur Ek Sahukarni)
सकट चौथ पौराणिक व्रत कथा: एक साहूकार और साहूकारनी (Sakat Chauth Pauranik Vrat Katha – Ek Sahukar Aur Ek Sahukarni)
एक साहूकार और एक साहूकारनी थे। वह धर्म पुण्य को नहीं मानते थे। इसके कारण उनके कोई बच्चा नहीं था। एक दिन साहूकारनी पडोसी के घर गयी। उस दिन सकट चौथ था, वहाँ पड़ोसन सकट चौथ की पूजा कर के कहानी सुना रही थी।

साहूकारनी ने पड़ोसन से पूछा: तुम क्या कर रही हो?

तब पड़ोसन बोली: कि आज चौथ का व्रत है, इसलिए कहानी सुना रही हूँ।

तब साहूकारनी बोली: चौथ के व्रत करने से क्या होता है?

तब पड़ोसन बोली: इसे करने से अन्न, धन, सुहाग, पुत्र सब मिलता है।

तब साहूकारनी ने कहा: यदि मेरा गर्भ रह जाये तो में सवा सेर तिलकुट करुँगी और चौथ का व्रत करुँगी |

श्री गणेश भगवान की कृपया से साहूकारनी के गर्भ रह गया। तो वह बोली कि मेरे लड़का हो जाये, तो में ढाई सेर तिलकुट करुँगी। कुछ दिन बाद उसके लड़का हो गया, तो वह बोली की हे चौथ भगवान! मेरे बेटे का विवाह हो जायेगा, तो सवा पांच सेर का तिलकुट करुँगी।

कुछ वर्षो बाद उसके बेटे का विवाह तय हो गया और उसका बेटा विवाह करने चला गया। लेकिन उस साहूकारनी ने तिलकुट नहीं किया। इस कारण से चौथ देव क्रोधित हो गये और उन्होंने फेरो से उसके बेटे को उठाकर पीपल के पेड़ पर बिठा दिया। सभी वर को खोजने लगे पर वो नहीं मिला, हतास होकर सारे लोग अपने-अपने घर को लौट गए। इधर जिस लड़की से साहूकारनी के लड़के का विवाह होने वाला था, वह अपनी सहेलियों के साथ गणगौर पूजने के लिए जंगल में दूब लेने गयी।

तभी रास्ते में पीपल के पेड़ से आवाज आई: ओ मेरी अर्धब्यहि

यह बात सुनकर जब लड़की घर आयी, उसके बाद वह धीरे-धीरे सूख कर काँटा होने लगी।

एक दिन लड़की की माँ ने कहा: मैं तुम्हें अच्छा खिलाती हूँ, अच्छा पहनाती हूँ, फिर भी तू सूखती जा रही है ? ऐसा क्यों?
तब लड़की अपनी माँ से बोली कि वह जब भी दूब लेने जंगल जाती है, तो पीपल के पेड़ से एक आदमी बोलता है कि ओ मेरी अर्धब्यहि।

उसने मेहँदी लगा राखी है और सेहरा भी बांध रखा है। तब उसकी माँ ने पीपल के पेड़ के पास जा कर देखा, यह तो उसका जमाई ही है।
तब उसकी माँ ने जमाई से कहा: यहाँ क्यों बैठे हैं? मेरी बेटी तो अर्धब्यहि कर दी और अब क्या लोगे?

साहूकारनी का बेटा बोला: मेरी माँ ने चौथ का तिलकुट बोला था लेकिन नहीं किया, इस लिए चौथ माता ने नाराज हो कर यहाँ बैठा दिया।

यह सुनकर उस लड़की की माँ साहूकारनी के घर गई और उससे पूछा की तुमने सकट चौथ का कुछ बोला है क्या? तब साहूकारनी बोली: तिलकुट बोला था। उसके बाद साहूकारनी बोली मेरा बेटा घर आजाये, तो ढाई मन का तिलकुट करुँगी।

इससे श्री गणेश भगवन प्रसंन हो गए और उसके बेटे को फेरों में ला कर बैठा दिया। बेटे का विवाह धूम-धाम से हो गया। जब साहूकारनी के बेटा एवं बहू घर आगए तब साहूकारनी ने ढाई मन तिलकुट किया और बोली हे चौथ देव! आप के आशीर्वाद से मेरे बेटा-बहू घर आये हैं, जिससे में हमेसा तिलकुट करके व्रत करुँगी। इसके बाद सारे नगर वासियों ने तिलकुट के साथ सकट व्रत करना प्रारम्भ कर दिया।

हे सकट चौथ! जिस तरह साहूकारनी को बेटे-बहू से मिलवाया, वैसे ही हम सब को मिलवाना। इस कथा को कहने सुनने वालों का भला करना।

बोलो सकट चौथ की जय। श्री गणेश देव की जय।

सकट चौथ पौराणिक व्रत कथा – श्री महादेवजी पार्वती (Sakat Chauth Pauranik Vrat Katha – Shri Mahadev Parvati)
सकट चौथ पौराणिक व्रत कथा – श्री महादेवजी पार्वती (Sakat Chauth Pauranik Vrat Katha – Shri Mahadev Parvati)
एक बार महादेवजी पार्वती सहित नर्मदा के तट पर गए। वहाँ एक सुंदर स्थान पर पार्वतीजी ने महादेवजी के साथ चौपड़ खेलने की इच्छा व्यक्त की।

तब शिवजी ने कहा: हमारी हार-जीत का साक्षी कौन होगा?

पार्वती ने तत्काल वहाँ की घास के तिनके बटोरकर एक पुतला बनाया और उसमें प्राण-प्रतिष्ठा करके उससे कहा: बेटा! हम चौपड़ खेलना चाहते हैं, किन्तु यहाँ हार-जीत का साक्षी कोई नहीं है। अतः खेल के अन्त में तुम हमारी हार-जीत के साक्षी होकर बताना कि हममें से कौन जीता, कौन हारा?

खेल आरंभ हुआ। दैवयोग से तीनों बार पार्वतीजी ही जीतीं। जब अंत में बालक से हार-जीत का निर्णय कराया गया तो उसने महादेवजी को विजयी बताया। परिणामतः पार्वतीजी ने क्रुद्ध होकर उसे एक पाँव से लंगड़ा होने और वहाँ के कीचड़ में पड़ा रहकर दुःख भोगने का शाप दे दिया।

बालक ने विनम्रतापूर्वक कहा: माँ! मुझसे अज्ञानवश ऐसा हो गया है। मैंने किसी कुटिलता या द्वेष के कारण ऐसा नहीं किया। मुझे क्षमा करें तथा शाप से मुक्ति का उपाय बताएँ।

तब ममतारूपी माँ को उस पर दया आ गई और वे बोलीं: यहाँ नाग-कन्याएँ गणेश-पूजन करने आएँगी। उनके उपदेश से तुम गणेश व्रत करके मुझे प्राप्त करोगे। इतना कहकर वे कैलाश पर्वत चली गईं।

एक वर्ष बाद वहाँ श्रावण में नाग-कन्याएँ गणेश पूजन के लिए आईं। नाग-कन्याओं ने गणेश व्रत करके उस बालक को भी व्रत की विधि बताई। तत्पश्चात बालक ने 12 दिन तक श्रीगणेशजी का व्रत किया।

तब गणेशजी ने उसे दर्शन देकर कहा: मैं तुम्हारे व्रत से प्रसन्न हूँ। मनोवांछित वर माँगो।

बालक बोला: भगवन! मेरे पाँव में इतनी शक्ति दे दो कि मैं कैलाश पर्वत पर अपने माता-पिता के पास पहुँच सकूं और वे मुझ पर प्रसन्न हो जाएँ।

गणेशजी तथास्तु कहकर अंतर्धान हो गए। बालक भगवान शिव के चरणों में पहुँच गया। शिवजी ने उससे वहाँ तक पहुँचने के साधन के बारे में पूछा।

तब बालक ने सारी कथा शिवजी को सुना दी। उधर उसी दिन से अप्रसन्न होकर पार्वती शिवजी से भी विमुख हो गई थीं। तदुपरांत भगवान शंकर ने भी बालक की तरह 21 दिन पर्यन्त श्रीगणेश का व्रत किया, जिसके प्रभाव से पार्वती के मन में स्वयं महादेवजी से मिलने की इच्छा जाग्रत हुई।

वे शीघ्र ही कैलाश पर्वत पर आ पहुँची। वहाँ पहुँचकर पार्वतीजी ने शिवजी से पूछा: भगवन! आपने ऐसा कौन-सा उपाय किया जिसके फलस्वरूप मैं आपके पास भागी-भागी आ गई हूँ। शिवजी ने गणेश व्रत का इतिहास उनसे कह दिया।

तब पार्वतीजी ने अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा से 21 दिन पर्यन्त 21-21 की संख्या में दूर्वा, पुष्प तथा लड्डुओं से गणेशजी का पूजन किया। 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं ही पार्वतीजी से आ मिले। उन्होंने भी माँ के मुख से इस व्रत का माहात्म्य सुनकर व्रत किया।

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Translated Version

Lyrics In English


Pratham kathaa


kahate hain ki satayug men raajaa harishchndr ke raajy men ek kumhaar thaa. Ek baar tamaam koshishon ke baavajood jab usake bartan kachche rah jaa rahe the to usane yah baat ek pujaaree ko bataa_ii. Us par pujaaree ne bataayaa ki kisee chhoṭe bachche kee bali se hee yah samasyaa door ho jaa_egee. Isake baad us kumhaar ne ek bachche ko pakadkar aanvaa men ḍaal diyaa. Vah sakaṭ chauth kaa din thaa. Kaafee khojane ke baad bhee jab usakee maan ko usakaa beṭaa naheen milaa to usane gaṇaesh jee ke samakṣ sachche man se praarthanaa kee. Udhar jab kumhaar ne subah uṭhakar dekhaa to aanvaa men usake bartan to pak ga_e lekin bachchaa bhee surakṣit thaa. Is ghaṭanaa ke baad kumhaar ḍaar gayaa aur raajaa ke samakṣ pahunch pooree kahaanee bataa_ii. Isake pashchaat raajaa ne bachche aur usakee maan ko bulavaayaa to maan ne snkaṭon ko door karane vaale sakaṭ chauth kee mahimaa kaa varṇaan kiyaa. Tabhee se mahilaa_en apanee sntaan aur parivaar ke saubhaagy aur lnbee aayu ke lie vrat ko karane lageen. Sakaṭ chauth pauraaṇaik vrat kathaah ek saahookaar aur saahookaaranee (sakat chauth pauranik rat katha – ek sahukar aur ek sahukarni)
sakaṭ chauth pauraaṇaik vrat kathaah ek saahookaar aur saahookaaranee (sakat chauth pauranik rat katha - ek sahukar aur ek sahukarni)
ek saahookaar aur ek saahookaaranee the. Vah dharm puṇay ko naheen maanate the. Isake kaaraṇa unake koii bachchaa naheen thaa. Ek din saahookaaranee paḍaosee ke ghar gayee. Us din sakaṭ chauth thaa, vahaan padosan sakaṭ chauth kee poojaa kar ke kahaanee sunaa rahee thee. Saahookaaranee ne padosan se poochhaah tum kyaa kar rahee ho? Tab padosan boleeah ki aaj chauth kaa vrat hai, isalie kahaanee sunaa rahee hoon. Tab saahookaaranee boleeah chauth ke vrat karane se kyaa hotaa hai? Tab padosan boleeah ise karane se ann, dhan, suhaag, putr sab milataa hai. Tab saahookaaranee ne kahaah yadi meraa garbh rah jaaye to men savaa ser tilakuṭ karungee aur chauth kaa vrat karungee . Shree gaṇaesh bhagavaan kee kripayaa se saahookaaranee ke garbh rah gayaa. To vah bolee ki mere ladkaa ho jaaye, to men ḍhaa_ii ser tilakuṭ karungee. Kuchh din baad usake ladkaa ho gayaa, to vah bolee kee he chauth bhagavaan! Mere beṭe kaa vivaah ho jaayegaa, to savaa paanch ser kaa tilakuṭ karungee. Kuchh varṣo baad usake beṭe kaa vivaah tay ho gayaa aur usakaa beṭaa vivaah karane chalaa gayaa. Lekin us saahookaaranee ne tilakuṭ naheen kiyaa. Is kaaraṇa se chauth dev krodhit ho gaye aur unhonne fero se usake beṭe ko uṭhaakar peepal ke ped par biṭhaa diyaa. Sabhee var ko khojane lage par vo naheen milaa, hataas hokar saare log apane-apane ghar ko lauṭ ga_e. Idhar jis ladkee se saahookaaranee ke ladke kaa vivaah hone vaalaa thaa, vah apanee saheliyon ke saath gaṇaagaur poojane ke lie jngal men doob lene gayee. Tabhee raaste men peepal ke ped se aavaaj aaiiah o meree ardhabyahi


yah baat sunakar jab ladkee ghar aayee, usake baad vah dheere-dheere sookh kar kaanṭaa hone lagee. Ek din ladkee kee maan ne kahaah main tumhen achchhaa khilaatee hoon, achchhaa pahanaatee hoon, fir bhee too sookhatee jaa rahee hai ? Aisaa kyon? Tab ladkee apanee maan se bolee ki vah jab bhee doob lene jngal jaatee hai, to peepal ke ped se ek aadamee bolataa hai ki o meree ardhabyahi. Usane mehndee lagaa raakhee hai aur seharaa bhee baandh rakhaa hai. Tab usakee maan ne peepal ke ped ke paas jaa kar dekhaa, yah to usakaa jamaa_ii hee hai. Tab usakee maan ne jamaa_ii se kahaah yahaan kyon baiṭhe hain? Meree beṭee to ardhabyahi kar dee aur ab kyaa loge? Saahookaaranee kaa beṭaa bolaah meree maan ne chauth kaa tilakuṭ bolaa thaa lekin naheen kiyaa, is lie chauth maataa ne naaraaj ho kar yahaan baiṭhaa diyaa. Yah sunakar us ladkee kee maan saahookaaranee ke ghar ga_ii aur usase poochhaa kee tumane sakaṭ chauth kaa kuchh bolaa hai kyaa? Tab saahookaaranee boleeah tilakuṭ bolaa thaa. Usake baad saahookaaranee bolee meraa beṭaa ghar aajaaye, to ḍhaa_ii man kaa tilakuṭ karungee. Isase shree gaṇaesh bhagavan prasnn ho ga_e aur usake beṭe ko feron men laa kar baiṭhaa diyaa. Beṭe kaa vivaah dhoom-dhaam se ho gayaa. Jab saahookaaranee ke beṭaa evn bahoo ghar aaga_e tab saahookaaranee ne ḍhaa_ii man tilakuṭ kiyaa aur bolee he chauth dev! Aap ke aasheervaad se mere beṭaa-bahoo ghar aaye hain, jisase men hamesaa tilakuṭ karake vrat karungee. Isake baad saare nagar vaasiyon ne tilakuṭ ke saath sakaṭ vrat karanaa praarambh kar diyaa. He sakaṭ chauth! Jis tarah saahookaaranee ko beṭe-bahoo se milavaayaa, vaise hee ham sab ko milavaanaa. Is kathaa ko kahane sunane vaalon kaa bhalaa karanaa. Bolo sakaṭ chauth kee jay. Shree gaṇaesh dev kee jay. Sakaṭ chauth pauraaṇaik vrat kathaa – shree mahaadevajee paarvatee (sakat chauth pauranik rat katha – shri mahadev parvati)
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aarateeah shree gaṇaesh jee
aarateeah om jay jagadeesh hare
shree gaṇaesh aṣṭottar naamaavali
dillee aur aas-paas ke prasiddh shree gaṇaesh mndir
shree siddhivinaayak gaṇaesh bhajan
mntrah shree gaṇaesh – vakratuṇaḍa mahaakaay
shree siddhivinaayak gaṇaapati mndir
gaṇaapati shree gaṇaesh chaaleesaa
shree gaṇaesh evn buḍhiyaa maa_ii kee kahaanee
shree siddhivinaayak gaṇaesh bhajan
shree gaṇaeshapa~ncharatnam – mudaakaraattamodakn


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Song Credits & Copyright Details:

गाना / Title : Sakat Chauth Pauranik Vrat Katha


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