यहाँ आपको Top 10 Chalisa Lyrics बेहतरीन चालीसा लिरिक्स मिलेंग। यह Top 10 Chalisa Lyrics सबसे ज्यादा लोकप्रिय तथा सबसे ज्यादा सुने जाने वाले चालीसा है। हम उम्मीद करते हैं आपको यह Top 10 Chalisa Lyrics चालीसा लिरिक्स पसंद आएंगे।
- राम चालीसा
- हनुमान चालीसा
- भैरव चालीसा
- कृष्ण चालीसा
- दुर्गा चालीसा
- काली चालीसा
- विष्णु चालीसा
- शिव चालीसा
- बजरंग बाण
- गणेश चालीसा
1. Ram Chalisa राम चालीसा
Singer – Shekher Sen
श्री रघुवीर भक्त हितकारी | सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ||
निशिदिन ध्यान धरे जो कोई | त सम भक्त और नहिं होई ||
ध्यान धरे शिवजी मन माहीं | ब्रह्म इन्द्र पार नहिं पाही |
दूत तुम्हार वीर हनुमाना | जासु प्रभाव तिहुँ पुर जाना ||
तब भुज दण्ड प्रचण्ड कृपाला | रावण मारि सुरन प्रतिपाला |
तुम अनाथ के नाथ गुसाई | दीनन के हो सदा सहाई ||
ब्रह्मादिक तव पार न पावे | सदा ईश तुम्हरो यश गावैं ||
चारिहु वेद भरत है साखी। तुम भक्तन की लज्जा राखी ||
गुण गावत शारद मन माहीं | सुरपति ताको पार न पाहीं ||
नाम तुम्हार लेत जो कोई | ता सम धन्य और नहिं होई ||
राम नाम है अपरम्पारा | चारिउ वेदन जाहि पुकारा ||
गणपति नाम तुम्हारो लीनो | तिनको प्रथम पूज्य तुम कीनो ||
शेश रटत नित नाम तुम्हारा | महि को भार शीश पर धारा ||
फूल समान रहत सो भारा | पाव न कोऊ तुम्हरो पारा ||
भरत नाम तुम्हरो उर धारो | तासों कबहुं न रण में हारो ||
नाम शत्रुहन हृदय प्रकाशा | सुमिरत होत शत्रु कर नाशा ||
लखन तुम्हारे आज्ञा कारी | सदा करत संतन रखवारी ||
ताते रण जीते नहिं कोई | युद्ध जुरे यमहूं किन होई ||
महालक्ष्मी धर अवतारा | सब विधि करत पाप को छारा ||
सीता राम पुनीता गायो | भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो ||
घट सों प्रकट भई सो आई | जाको देखत चन्द्र लजाई ||
सो तुमरे नित पांव पलोटत | नवो निधि चरणन में लोटत ||
सिद्ध अठारह मंगलकारी | सो तुम पर जावै बलिहारी ||
औरहु जो अनेक प्रभुताई | सो सीतापति तुमहिं बनाई ||
इच्छा ते कोटिन संसारा | रचत न लागत पल की बारा ||
जो तुम्हे चरणन चित लावै | ताकी मुक्ति अवसि हो जावै ||
जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरूपा | नर्गुण ब्रह्म अखण्ड अनूपा ||
सत्य सत्य जय सत्यव्रत स्वामी | सत्य सनातन अन्तर्यामी ||
सत्य भजन तुम्हरो जो गावे | सो निश्चय चारों फल पावे ||
सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं | तुमने भक्तिहिं सब विधि दीन्हीं ||
सुनहु राम तुम तात हमारे | तुमहिं भरत कुल पूज्य प्रचारे ||
तुमहिं देव कुल देव हमारे | तुम गुरु देव प्राण के प्यारे ||
जो कुछ हो सो तुम ही राजा | जय जय जय प्रभु राखो लाजा ||
राम आत्मा पोषण हारे | जय जय दशरथ राज दुलारे ||
ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरूपा | नमो नमो जय जगपति भूपा ||
धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा | नाम तुम्हार हरत संतापा ||
सत्य शुद्घ देवन मुख गाया | बजी दुन्दुभी शंख बजाया ||
सत्य सत्य तुम सत्य सनातन। तुम ही हो हमरे तन मन धन ||
याको पाठ करे जो कोई | ज्ञान प्रकट ताके उर होई ||
आवागमन मिटै तिहि केरा | सत्य वचन माने शिर मेरा ||
और आस मन में जो होई | मनवांछित फल पावे सोई ||
तीनहुं काल ध्यान जो ल्यावे | तुलसी दल अरु फूल चढ़ावे ||
साग पत्र सो भोग लगावे | सो नर सकल सिद्घता पावे॥
अन्त समय रघुबरपुर जाई | जहां जन्म हरि भक्त कहाई॥
श्री हरिदास कहै अरु गावे | सो बैकुण्ठ धाम को पावे ||
|| श्री राम चालीसा लिरिक्स ॥ दोहा॥
सात दिवस जो नेम कर, पाठ करे चित लाय |
हरिदास हरि कृपा से, अवसि भक्ति को पाय ||
राम चालीसा जो पढ़े, राम चरण चित लाय |
जो इच्छा मन में करै, सकल सिद्घ हो जाय ||
2. Hanuman Chalisa हनुमान चालीसा
Singer – Hariharan
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि |
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि ||
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार |
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार ||
हनुमान चालीसा लिरिक्स चौपाई :-
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर |
जय कपीस तिहुं लोक उजागर ||
रामदूत अतुलित बल धामा |
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा ||
महाबीर बिक्रम बजरंगी |
कुमति निवार सुमति के संगी ||
कंचन बरन बिराज सुबेसा |
कानन कुंडल कुंचित केसा ||
हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजै |
कांधे मूंज जनेऊ साजै ||
संकर सुवन केसरी नंदन |
तेज प्रताप महा जग बन्दन ||
विद्यावान गुनी अति चातुर |
राम काज करिबे को आतुर ||
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया |
राम लखन सीता मन बसिया ||
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा |
बिकट रूप धरि लंक जरावा ||
भीम रूप धरि असुर संहारे |
रामचंद्र के काज संवारे ||
लाय सजीवन लखन जियाये |
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ||
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई |
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ||
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं |
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ||
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा |
नारद सारद सहित अहीसा ||
जम कुबेर दिगपाल जहां ते |
कबि कोबिद कहि सके कहां ते ||
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा |
राम मिलाय राज पद दीन्हा ||
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना |
लंकेस्वर भए सब जग जाना ||
जुग सहस्र जोजन पर भानू |
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ||
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। |
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं ||
दुर्गम काज जगत के जेते |
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ||
राम दुआरे तुम रखवारे |
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ||
सब सुख लहै तुम्हारी सर ना |
तुम रक्षक काहू को डरना ||
आपन तेज सम्हारो आपै |
तीनों लोक हांक तें कांपै ||
भूत पिसाच निकट नहिं आवै |
महाबीर जब नाम सुनावै ||
नासै रोग हरै सब पीरा |
जपत निरंतर हनुमत बीरा ||
संकट तें हनुमान छुड़ावै |
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ||
सब पर राम तपस्वी राजा |
तिन के काज सकल तुम साजा ||
और मनोरथ जो कोई लावै |
सोइ अमित जीवन फल पावै ||
चारों जुग परताप तुम्हारा |
है परसिद्ध जगत उजियारा ||
साधु-संत के तुम रखवारे |
असुर निकंदन राम दुलारे ||
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता |
अस बर दीन जानकी माता ||
राम रसायन तुम्हरे पासा |
सदा रहो रघुपति के दासा ||
तुम्हरे भजन राम को पावै |
जनम-जनम के दुख बिसरावै ||
अन्तकाल रघुबर पुर जाई |
जहां जन्म हरि-भक्त कहाई ||
और देवता चित्त न धरई |
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ||
संकट कटै मिटै सब पीरा |
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ||
जै जै जै हनुमान गोसाईं |
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ||
जो सत बार पाठ कर कोई |
छूटहि बंदि महा सुख होई ||
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा |
होय सिद्धि साखी गौरीसा ||
तुलसीदास सदा हरि चेरा |
कीजै नाथ हृदय मंह डेरा ||
3. Bhairav Chalisa भैरव चालीसा
Singer – Anuradha Paudwal
भैरव चालीसा दोहा –
श्री गणपति गुरु गौरि पद प्रेम सहित धरि माथ |
चालीसा वन्दन करौं श्री शिव भैरवनाथ ||
श्री भैरव संकट हरण मंगल करण कृपाल |
श्याम वरण विकराल वपु लोचन लाल विशाल ||
जय जय श्री काली के लाला, जयति जयति काशी-कुतवाला ||
जयति बटुक-भैरव भय हारी, जयति काल-भैरव बलकारी ||
जयति नाथ-भैरव विख्याता, जयति सर्व-भैरव सुखदाता ||
भैरव रूप कियो शिव धारण, भव के भार उतारण कारण ||
भैरव रव सुनि ह्वै भय दूरी, सब विधि होय कामना पूरी ||
शेष महेश आदि गुण गायो, काशी-कोतवाल कहलायो ||
जटा जूट शिर चन्द्र विराजत, बाला मुकुट बिजायठ साजत ||
कटि करधनी घूँघरू बाजत, दर्शन करत सकल भय भाजत ||
जीवन दान दास को दीन्ह्यो, कीन्ह्यो कृपा नाथ तब चीन्ह्यो ||
वसि रसना बनि सारद-काली, दीन्ह्यो वर राख्यो मम लाली ||
धन्य धन्य भैरव भय भञ्जन, जय मनरञ्जन खल दल भञ्जन ||
कर त्रिशूल डमरू शुचि कोड़ा, कृपा कटाक्श सुयश नहिं थोडा ||
जो भैरव निर्भय गुण गावत, अष्टसिद्धि नव निधि फल पावत ||
रूप विशाल कठिन दुख मोचन, क्रोध कराल लाल दुहुँ लोचन ||
अगणित भूत प्रेत सङ्ग डोलत, बं बं बं शिव बं बं बोलत ||
रुद्रकाय काली के लाला, महा कालहू के हो काला ||
बटुक नाथ हो काल गँभीरा, श्वेत रक्त अरु श्याम शरीरा ||
करत नीनहूँ रूप प्रकाशा, भरत सुभक्तन कहँ शुभ आशा ||
रत्न जड़ित कञ्चन सिंहासन, व्याघ्र चर्म शुचि नर्म सुआनन ||
तुमहि जाइ काशिहिं जन ध्यावहिं, विश्वनाथ कहँ दर्शन पावहिं ||
जय प्रभु संहारक सुनन्द जय, जय उन्नत हर उमा नन्द जय ||
भीम त्रिलोचन स्वान साथ जय, वैजनाथ श्री जगतनाथ जय ||
महा भीम भीषण शरीर जय, रुद्र त्रयम्बक धीर वीर जय ||
अश्वनाथ जय प्रेतनाथ जय, स्वानारुढ़ सयचन्द्र नाथ जय ||
निमिष दिगम्बर चक्रनाथ जय, गहत अनाथन नाथ हाथ जय ||
त्रेशलेश भूतेश चन्द्र जय, क्रोध वत्स अमरेश नन्द जय ||
श्री वामन नकुलेश चण्ड जय, कृत्याऊ कीरति प्रचण्ड जय ||
रुद्र बटुक क्रोधेश कालधर, चक्र तुण्ड दश पाणिव्याल धर ||
करि मद पान शम्भु गुणगावत, चौंसठ योगिन सङ्ग नचावत ||
करत कृपा जन पर बहु ढङ्गा, काशी कोतवाल अड़बङ्गा ||
देयँ काल भैरव जब सोटा, नसै पाप मोटा से मोटा ||
जनकर निर्मल होय शरीरा, मिटै सकल सङ्कट भव पीरा ||
श्री भैरव भूतोङ्के राजा, बाधा हरत करत शुभ काजा ||
ऐलादी के दुःख निवारयो, सदा कृपाकरि काज सम्हारयो ||
सुन्दर दास सहित अनुरागा, श्री दुर्वासा निकट प्रयागा ||
श्री भैरव जी की जय लेख्यो, सकल कामना पूरण देख्यो ||
भैरव चालीसा दोहा –
जय जय जय भैरव बटुक स्वामी सङ्कट टार |
कृपा दास पर कीजिए शङ्कर के अवतार ||
4. Krishna Chalisa कृष्ण चालीसा
Singer – Anoop Jalota
कृष्ण चालीसा दोहा –
बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम |
अरुण अधर जनु बिम्बफल, नयन कमल अभिराम ||
पूर्ण इन्द्र, अरविन्द मुख, पीताम्बर शुभ साज |
जय मन मोहन मदन छवि, कृष्णचन्द्र महाराज ||
कृष्ण चालीसा चौपाई –
जय यदुनंदन जय जगवंदन | जय वसुदेव देवकी नन्दन ||
जय यशुदा सुत नन्द दुलारे । जय प्रभु भक्तन के दृग तारे ||
जय नट-नागर, नाग नथइया | कृष्ण कन्हइया धेनु चरइया ||
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो | आओ दीनन कष्ट निवारो ||
वंशी मधुर अधर धरि टेरौ | होवे पूर्ण विनय यह मेरौ ||
आओ हरि पुनि माखन चाखो | आज लाज भारत की राखो ||
गोल कपोल, चिबुक अरुणारे | मृदु मुस्कान मोहिनी डारे ||
राजित राजिव नयन विशाला | मोर मुकुट वैजन्तीमाला ||
कुंडल श्रवण, पीत पट आछे | कटि किंकिणी काछनी काछे ||
नील जलज सुन्दर तनु सोहे | छबि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे ||
मस्तक तिलक, अलक घुंघराले | आओ कृष्ण बांसुरी वाले ||
करि पय पान, पूतनहि तार्यो | अका बका कागासुर मार्यो ||
मधुवन जलत अगिन जब ज्वाला | भै शीतल लखतहिं नंदलाला ||
सुरपति जब ब्रज चढ़्यो रिसाई | मूसर धार वारि वर्षाई ||
लगत लगत व्रज चहन बहायो | गोवर्धन नख धारि बचायो ||
लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई | मुख मंह चौदह भुवन दिखाई ||
दुष्ट कंस अति उधम मचायो | कोटि कमल जब फूल मंगायो ||
नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें | चरण चिह्न दै निर्भय कीन्हें ||
करि गोपिन संग रास विलासा | सबकी पूरण करी अभिलाषा ||
केतिक महा असुर संहार्यो | कंसहि केस पकड़ि दै मार्यो ||
मात-पिता की बन्दि छुड़ाई | उग्रसेन कहं राज दिलाई ||
महि से मृतक छहों सुत लायो | मातु देवकी शोक मिटायो ||
भौमासुर मुर दैत्य संहारी | लाये षट दश सहसकुमारी ||
दै भीमहिं तृण चीर सहारा | जरासिंधु राक्षस कहं मारा ||
असुर बकासुर आदिक मार्यो | भक्तन के तब कष्ट निवार्यो ||
दीन सुदामा के दुख टार्यो | तंदुल तीन मूंठ मुख डार्यो ||
प्रेम के साग विदुर घर मांगे | दुर्योधन के मेवा त्यागे ||
लखी प्रेम की महिमा भारी | ऐसे श्याम दीन हितकारी ||
भारत के पारथ रथ हांके | लिये चक्र कर नहिं बल थाके ||
निज गीता के ज्ञान सुनाए | भक्तन हृदय सुधा वर्षाए ||
मीरा थी ऐसी मतवाली | विष पी गई बजाकर ताली ||
राना भेजा सांप पिटारी | शालीग्राम बने बनवारी ||
निज माया तुम विधिहिं दिखायो | उर ते संशय सकल मिटायो ||
तब शत निन्दा करि तत्काला | जीवन मुक्त भयो शिशुपाला ||
जबहिं द्रौपदी टेर लगाई | दीनानाथ लाज अब जाई ||
तुरतहि वसन बने नंदलाला | बढ़े चीर भै अरि मुंह काला ||
अस अनाथ के नाथ कन्हइया | डूबत भंवर बचावइ नइया ||
‘सुन्दरदास’ आस उर धारी | दया दृष्टि कीजै बनवारी ||
नाथ सकल मम कुमति निवारो | क्षमहु बेगि अपराध हमारो ||
खोलो पट अब दर्शन दीजै | बोलो कृष्ण कन्हइया की जै ||
श्री कृष्ण चालीसा दोहा –
यह चालीसा कृष्ण का, पाठ करै उर धारि |
अष्ट सिद्धि नवनिधि फल, लहै पदारथ चारि ||
5. Durga Chalisa दुर्गा चालीसा
Singer – Anuradha Paudwal
नमो नमो दुर्गे सुख करनी | नमो – नमो अंबे दुःख हरनी ||
निरंकार है ज्योति तुम्हारी | तिहूं लोक फैली उजियारी ||
शशि ललाट मुख महाविशाला | नेत्र लाल भृकुटि विकराला ||
रूप मातु को अधिक सुहावे | दरश करत जन अति सुख पावे ||
तुम संसार शक्ति लै कीना | पालन हेतु अन्न धन दीना ||
अन्नपूर्णा हुई जग पाला | तुम ही आदि सुन्दरी बाला ||
प्रलयकाल सब नाशन हारी | तुम गौरी शिवशंकर प्यारी ||
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें | ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ||
रूप सरस्वती को तुम धारा | दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा ||
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा | परगट भई फाड़कर खम्बा ||
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो | हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो ||
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं | श्री नारायण अंग समाहीं ||
क्षीरसिन्धु में करत विलासा | दयासिन्धु दीजै मन आसा ||
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी | महिमा अमित न जात बखानी ||
मातंगी अरु धूमावति माता | भुवनेश्वरी बगला सुख दाता ||
श्री भैरव तारा जग तारिणी | छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी ||
केहरि वाहन सोह भवानी | लांगुर वीर चलत अगवानी ||
कर में खप्पर खड्ग विराजै | जाको देख काल डर भाजै ||
सोहै अस्त्र और त्रिशूला | जाते उठत शत्रु हिय शूला ||
नगरकोट में तुम्हीं विराजत | तिहुँलोक में डंका बाजत ||
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे | रक्तन बीज शंखन संहारे ||
महिषासुर नृप अति अभिमानी | जेहि अघ भार मही अकुलानी ||
रूप कराल कालिका धारा | सेन सहित तुम तिहि संहारा ||
परी गाढ़ सन्तन पर जब जब | भई सहाय मातु तुम तब तब ||
आभा पुरी अरु बासव लोका | तब महिमा सब रहें अशोका ||
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी | तुम्हें सदा पूजें नर-नारी ||
प्रेम भक्ति से जो यश गावें | दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें ||
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई | जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई ||
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी | योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ||
शंकर आचारज तप कीनो | काम क्रोध जीति सब लीनो ||
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को | काहु काल नहिं सुमिरो तुमको ||
शक्ति रूप का मरम न पायो | शक्ति गई तब मन पछितायो ||
शरणागत हुई कीर्ति बखानी | जय जय जय जगदम्ब भवानी ||
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा | दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ||
मोको मातु कष्ट अति घेरो | तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ||
आशा तृष्णा निपट सतावें | रिपु मुरख मोही डरपावे ||
शत्रु नाश कीजै महारानी | सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी ||
करो कृपा हे मातु दयाला | ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला ||
जब लगि जियऊं दया फल पाऊं | तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं ||
श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै | सब सुख भोग परमपद पावै ||
देवीदास शरण निज जानी | करहु कृपा जगदम्ब भवानी ||
|| इति श्रीदुर्गा चालीसा सम्पूर्ण || दुर्गा चालीसा लिरिक्स ||
6. Kali Chalisa काली चालीसा
Singer – Kumar Vishu
श्री काली चालीसा दोहा –
जयकाली कलिमलहरण, महिमा अगम अपार
महिष मर्दिनी कालिका, देहु अभय अपार ||
अरि मद मान मिटावन हारी | मुण्डमाल गल सोहत प्यारी ||1||
अष्टभुजी सुखदायक माता | दुष्टदलन जग में विख्याता ||2||
भाल विशाल मुकुट छवि छाजै | कर में शीश शत्रु का साजै ||3||
दूजे हाथ लिए मधु प्याला | हाथ तीसरे सोहत भाला ||4||
चौथे खप्पर खड्ग कर पांचे | छठे त्रिशूल शत्रु बल जांचे ||5||
सप्तम करदमकत असि प्यारी | शोभा अद्भुत मात तुम्हारी ||6||
अष्टम कर भक्तन वर दाता | जग मनहरण रूप ये माता ||7||
भक्तन में अनुरक्त भवानी | निशदिन रटें ॠषी-मुनि ज्ञानी ||8||
महशक्ति अति प्रबल पुनीता | तू ही काली तू ही सीता ||9||
पतित तारिणी हे जग पालक | कल्याणी पापी कुल घालक ||10||
शेष सुरेश न पावत पारा | गौरी रूप धर्यो इक बारा ||11||
तुम समान दाता नहिं दूजा | विधिवत करें भक्तजन पूजा ||12||
रूप भयंकर जब तुम धारा | दुष्टदलन कीन्हेहु संहारा ||13||
नाम अनेकन मात तुम्हारे | भक्तजनों के संकट टारे ||14||
कलि के कष्ट कलेशन हरनी | भव भय मोचन मंगल करनी ||15||
महिमा अगम वेद यश गावैं | नारद शारद पार न पावैं ||16||
भू पर भार बढ्यौ जब भारी | तब तब तुम प्रकटीं महतारी ||17||
आदि अनादि अभय वरदाता | विश्वविदित भव संकट त्राता ||18||
कुसमय नाम तुम्हारौ लीन्हा | उसको सदा अभय वर दीन्हा ||19||
ध्यान धरें श्रुति शेष सुरेशा | काल रूप लखि तुमरो भेषा ||20||
कलुआ भैंरों संग तुम्हारे | अरि हित रूप भयानक धारे ||21||
सेवक लांगुर रहत अगारी | चौसठ जोगन आज्ञाकारी ||22||
त्रेता में रघुवर हित आई | दशकंधर की सैन नसाई ||23||
खेला रण का खेल निराला | भरा मांस-मज्जा से प्याला ||24||
रौद्र रूप लखि दानव भागे | कियौ गवन भवन निज त्यागे ||25||
तब ऐसौ तामस चढ़ आयो | स्वजन विजन को भेद भुलायो ||26||
ये बालक लखि शंकर आए | राह रोक चरनन में धाए ||27||
तब मुख जीभ निकर जो आई | यही रूप प्रचलित है माई ||28||
बाढ्यो महिषासुर मद भारी | पीड़ित किए सकल नर-नारी ||29||
करूण पुकार सुनी भक्तन की | पीर मिटावन हित जन-जन की ||30||
तब प्रगटी निज सैन समेता | नाम पड़ा मां महिष विजेता ||31||
शुंभ निशुंभ हने छन माहीं | तुम सम जग दूसर कोउ नाहीं ||32||
मान मथनहारी खल दल के | सदा सहायक भक्त विकल के ||33||
दीन विहीन करैं नित सेवा | पावैं मनवांछित फल मेवा ||34||
संकट में जो सुमिरन करहीं | उनके कष्ट मातु तुम हरहीं ||35||
प्रेम सहित जो कीरति गावैं | भव बन्धन सों मुक्ती पावैं ||36||
काली चालीसा जो पढ़हीं | स्वर्गलोक बिनु बंधन चढ़हीं ||37||
दया दृष्टि हेरौ जगदम्बा | केहि कारण मां कियौ विलम्बा ||38||
करहु मातु भक्तन रखवाली | जयति जयति काली कंकाली ||39||
सेवक दीन अनाथ अनारी | भक्तिभाव युति शरण तुम्हारी ||40||
श्री काली चालीसा दोहा –
प्रेम सहित जो करे, काली चालीसा पाठ |
तिनकी पूरन कामना, होय सकल जग ठाठ ||
7. Vishnu Chalisa विष्णु चालीसा
Singer – Anuradha Paudwal
श्री विष्णु चालीसा दोहा –
विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाए |
कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताए |
श्री विष्णु चालीसा चौपाई –
नमो विष्णु भगवान खरारी | कष्ट नशावन अखिल बिहारी ||
प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी | त्रिभुवन फैल रही उजियारी ||
सुन्दर रूप मनोहर सूरत | सरल स्वभाव मोहनी मूरत ||
तन पर पीतांबर अति सोहत | बैजन्ती माला मन मोहत ||
शंख चक्र कर गदा बिराजे | देखत दैत्य असुर दल भाजे ||
सत्य धर्म मद लोभ न गाजे | काम क्रोध मद लोभ न छाजे ||
संतभक्त सज्जन मनरंजन | दनुज असुर दुष्टन दल गंजन ||
सुख उपजाय कष्ट सब भंजन | दोष मिटाय करत जन सज्जन ||
पाप काट भव सिंधु उतारण | कष्ट नाशकर भक्त उबारण ||
करत अनेक रूप प्रभु धारण | केवल आप भक्ति के कारण ||
धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा | तब तुम रूप राम का धारा ||
भार उतार असुर दल मारा | रावण आदिक को संहारा ||
आप वराह रूप बनाया | हरण्याक्ष को मार गिराया ||
धर मत्स्य तन सिंधु बनाया | चौदह रतनन को निकलाया ||
अमिलख असुरन द्वंद मचाया | रूप मोहनी आप दिखाया ||
देवन को अमृत पान कराया | असुरन को छवि से बहलाया ||
कूर्म रूप धर सिंधु मझाया | मंद्राचल गिरि तुरत उठाया ||
शंकर का तुम फन्द छुड़ाया | भस्मासुर को रूप दिखाया ||
वेदन को जब असुर डुबाया | कर प्रबंध उन्हें ढूँढवाया ||
मोहित बनकर खलहि नचाया | उसही कर से भस्म कराया ||
असुर जलंधर अति बलदाई | शंकर से उन कीन्ह लडाई ||
हार पार शिव सकल बनाई | कीन सती से छल खल जाई ||
सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी | बतलाई सब विपत कहानी ||
तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी | वृन्दा की सब सुरति भुलानी ||
देखत तीन दनुज शैतानी | वृन्दा आय तुम्हें लपटानी ||
हो स्पर्श धर्म क्षति मानी | हना असुर उर शिव शैतानी ||
तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे | हिरणाकुश आदिक खल मारे ||
गणिका और अजामिल तारे | बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे ||
हरहु सकल संताप हमारे | कृपा करहु हरि सिरजन हारे ||
देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे | दीन बन्धु भक्तन हितकारे ||
चहत आपका सेवक दर्शन | करहु दया अपनी मधुसूदन ||
जानूं नहीं योग्य जप पूजन | होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन ||
शीलदया सन्तोष सुलक्षण | विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण ||
करहुं आपका किस विधि पूजन | कुमति विलोक होत दुख भीषण ||
करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण | कौन भांति मैं करहु समर्पण ||
सुर मुनि करत सदा सेवकाई | हर्षित रहत परम गति पाई ||
दीन दुखिन पर सदा सहाई | निज जन जान लेव अपनाई ||
पाप दोष संताप नशाओ | भव-बंधन से मुक्त कराओ ||
सुख संपत्ति दे सुख उपजाओ | निज चरनन का दास बनाओ ||
निगम सदा ये विनय सुनावै | पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै ||
8. Shiv Chalisa शिव चालीसा
Singer – Ashwani Amarnath
शिव चालीसा लिरिक्स दोहा –
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान |
कहत अयोध्या-दास तुम, देहु अभय वरदान ||
शिव चालीसा लिरिक्स चौपाई –
जय गिरिजा पति दीन दयाला | सदा करत संतन प्रतिपाला ||
भाल चन्द्रमा सोहत नीकै | कानन कुण्डल नागफनी कै ||
अंग गौर शिर गंग बहाए | मुण्ड-माल तन क्षार लगाये ||
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहै | छवि को देखि नाग मन मोहै ||
मैना मातु की हवे दुलारी | बाम अंग सोहत छवि न्यारी ||
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी | करत सदा शत्रुन क्षयकारी ||
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे | सागर मध्य कमल हैं जैसे ||
कार्तिक श्याम और गणराऊ | या छवि को कहि जात न काऊ ||
देवन जबहीं जाय पुकारा | तब ही दुख प्रभु आप निवारा ||
किया उपद्रव तारक भारी | देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ||
तुरत षडानन आप पठायउ | लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ||
आप जलंधर असुर संहारा | सुयश तुम्हार विदित संसारा ||
त्रिपुरा-सुर सन युद्ध मचायी | सबहिं कृपा कर लीन बचायी ||
किया तपहिं भागीरथ भारी | पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ||
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं | सेवक स्तुति करत सदाहीं ||
वेद नाम महिमा तव गायी | अकथ अनादि भेद नहिं पायी ||
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला | जरत सुरासुर भये विहाला ||
कीन्ही दया तहं करी सहायी | नीलकण्ठ तब नाम कहायी ||
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा | जीत के लंक विभीषण दीन्हा ||
सहस कमल में हो रहे धारी | कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ||
एक कमल प्रभु राखेउ जोयी | कमल नयन पूजन चहं सोयी ||
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर | भए प्रसन्न दिए इच्छित वर ||
जय जय जय अनन्त अविनाशी | करत कृपा सब के घटवासी ||
दुष्ट सकल नित मोहि सतावे | भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवे ||
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो | येहि अवसर मोहि आन उबारो ||
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो | संकट से मोहि आन उबारो ||
मात-पिता भ्राता सब होई | संकट में पूछत नहिं कोई ||
स्वामी एक है आस तुम्हारी | आय हरहु मम संकट भारी ||
धन निर्धन को देत सदा हीं | जो कोई जांचे सो फल पाहीं ||
स्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी | क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ||
शंकर हो संकट के नाशन | मंगल कारण विघ्न विनाशन ||
योगी यति मुनि ध्यान लगावे | शारद नारद शीश नवावे ||
नमो नमो जय नमः शिवाय | सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ||
जो यह पाठ करे मन लायी | ता पर होत है शम्भु सहायी ||
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी | पाठ करे सो पावन हारी ||
पुत्र हीन कर इच्छा जोयी | निश्चय शिव प्रसाद तेहि होयी ||
पण्डित त्रयोदशी को लावै | ध्यान पूर्वक होम करावै ||
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा | ताके तन नहीं रहै कलेशा ||
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावै | शंकर सम्मुख पाठ सुनावै ||
जन्म जन्म के पाप नसावै | अन्त धाम शिवपुर में पावै ||
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी | जानि सकल दुःख हरहु हमारी ||
शिव चालीसा लिरिक्स दोहा :-
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा |
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश ||
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान |
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण ||
9. Bajrang Ban बजरंग बाण
Singer – Hariharan
निश्चय प्रेम प्रतीति ते,बिनय करै सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ,सिद्ध करै हनुमान॥
जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी॥
जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥
जैसे कूदि सिन्धु वहि पारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका॥
जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परम पद लीन्हा॥
बाग उजारि सिन्धु महं बोरा। अति आतुर यम कातर तोरा॥
अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा॥
लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुर पुर महं भई॥
अब विलम्ब केहि कारण स्वामी। कृपा करहुं उर अन्तर्यामी॥
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होइ दु:ख हरहुं निपाता॥
जय गिरिधर जय जय सुख सागर। सुर समूह समरथ भटनागर॥
ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमन्त हठीले। बैरिहिं मारू बज्र की कीले॥
गदा बज्र लै बैरिहिं मारो। महाराज प्रभु दास उबारो॥
ॐकार हुंकार महाप्रभु धावो। बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो॥
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमन्त कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा॥
सत्य होउ हरि शपथ पायके। रामदूत धरु मारु धाय के॥
जय जय जय हनुमन्त अगाधा। दु:ख पावत जन केहि अपराधा॥
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत कछु दास तुम्हारा॥
वन उपवन मग गिरि गृह माहीं। तुमरे बल हम डरपत नाहीं॥
पाय परौं कर जोरि मनावों। यह अवसर अब केहि गोहरावों॥
जय अंजनि कुमार बलवन्ता। शंकर सुवन धीर हनुमन्ता॥
बदन कराल काल कुल घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक॥
भूत प्रेत पिशाच निशाचर। अग्नि बैताल काल मारीमर॥
इन्हें मारु तोहि शपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की॥
जनकसुता हरि दास कहावो। ताकी शपथ विलम्ब न लावो॥
जय जय जय धुनि होत अकाशा। सुमिरत होत दुसह दु:ख नाशा॥
चरण शरण करि जोरि मनावों। यहि अवसर अब केहि गोहरावों॥
उठु उठु चलु तोहिं राम दुहाई। पांय परौं कर जोरि मनाई॥
ॐ चं चं चं चं चपल चलन्ता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता॥
ॐ हं हं हांक देत कपि चञ्चल। ॐ सं सं सहम पराने खल दल॥
अपने जन को तुरत उबारो। सुमिरत होय आनन्द हमारो॥
यहि बजरंग बाण जेहि मारो। ताहि कहो फिर कौन उबारो॥
पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करै प्राण की॥
यह बजरंग बाण जो जापै। तेहि ते भूत प्रेत सब कांपे॥
धूप देय अरु जपै हमेशा। ताके तन नहिं रहे कलेशा॥
॥ दोहा ॥-
प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै,सदा धरै उर ध्यान।
तेहि के कारज सकल शुभ,सिद्ध करै हनुमान॥
10. Ganesh Chalisa गणेश चालीसा
Singer – Anuradha Paudwal
जय गणपति सदगुणसदन, कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल।।
जय जय जय गणपति गणराजूमंगल भरण करण शुभ काजू।
जै गजबदन सदन सुखदाता विश्व विनायक बुद्घि विधाता ।।
वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन।
राजत मणि मुक्तन उर माला स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला।।
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं मोदक भोग सुगन्धित फूलं।
सुन्दर पीताम्बर तन साजित चरण पादुका मुनि मन राजित।।
धनि शिवसुवन षडानन भ्राता गौरी ललन विश्वविख्याता।
ऋद्घिसिद्घि तव चंवर सुधारे मूषक वाहन सोहत द्घारे।।
कहौ जन्म शुभकथा तुम्हारी अति शुचि पावन मंगलकारी।
एक समय गिरिराज कुमारी पुत्र हेतु तप कीन्हो भारी।।
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा तब पहुंच्यो तुम धरि द्घिज रुपा।
अतिथि जानि कै गौरि सुखारी बहुविधि सेवा करी तुम्हारी।।
अति प्रसन्न है तुम वर दीन्हा मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा।
मिलहि पुत्र तुहि, बुद्घि विशाला बिना गर्भ धारण, यहि काला।।
गणनायक, गुण ज्ञान निधाना पूजित प्रथम, रुप भगवाना।
अस कहि अन्तर्धान रुप है पलना पर बालक स्वरुप है।।
बनि शिशु, रुदन जबहिं तुम ठाना लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना।
सकल मगन, सुखमंगल गावहिं नभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं।।
शम्भु, उमा, बहु दान लुटावहिं सुर मुनिजन। सुत देखन आवहिं।
लखि अति आनन्द मंगल साजा देखन भी आये शनि राजा।।
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं बालक। देखन चाहत नाहीं।
गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो उत्सव मोर न शनि तुहि भायो।।
कहन लगे शनि, मन सकुचाई का करिहौ। शिशु मोहि दिखाई
नहिं विश्वास उमा उर भयऊ शनि सों बालक देखन कहाऊ।।
पडतहिं, शनि दृग कोण प्रकाशा बोलक सिर उड़ि गयो अकाशा।
गिरिजा गिरीं विकल है धरणी सो दुख दशा गयो नहीं वरणी।।
हाहाकार मच्यो कैलाशा शनि कीन्हो लखि सुत को नाशा।
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो काटि चक्र सो गज शिर लाये।।
बालक के धड़ ऊपर धारयो प्राण, मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो।
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे प्रथम पूज्य बुद्घि निधि, वन दीन्हे।।
बुद्ध परीक्षा जब शिव कीन्हा पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा।
चले षडानन, भरमि भुलाई रचे बैठ तुम बुद्घि उपाई।।
चरण मातुपितु के धर लीन्हें तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें।
धानी गणेश कही शिवाये हुए हर्षयो नभा ते सुरन सुमन बहु बरसाए।।
तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई शेष सहसमुख सके न गाई।
मैं मतिहीन मलीन दुखारी करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी।।
भजत रामसुन्दर प्रभुदासा जग प्रयाग, ककरा।
दर्वासा अब प्रभु दया दीन पर कीजै अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै।।
।।दोहा।।
श्री गणेश यह चालीसा,
पाठ करें धर ध्यान,
नित नव मंगल गृह बसै,
लहे जगत सन्मान,
सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश,
ऋषि पंचमी दिनेश,
पूरण चालीसा भयो,
मंगल मूर्ति गणेश।।
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