LYRIC

Here you will find the lyrics of the popular song – “Karwa Chauth Vrat Katha” from the Movie / Album – “”. The Music Director is “”. The song / soundtrack has been composed by the famous lyricist “” and was released on “23 October” in the beautiful voice of “”. The music video of the song features some amazing and talented actor / actress “”. It was released under the music label of “Bhakti Gyan”.

Karwa Chauth Vrat Katha Lyrics In Hindi

Lyrics In Hindi

साहूकार के सात लड़के, एक लड़की की कहानी:
एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी। एक बार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सेठानी सहित उसकी सातों बहुएं और उसकी बेटी ने भी करवा चौथ का व्रत रखा। रात्रि के समय जब साहूकार के सभी लड़के भोजन करने बैठे तो उन्होंने अपनी बहन से भी भोजन कर लेने को कहा। इस पर बहन ने कहा- भाई, अभी चांद नहीं निकला है। चांद के निकलने पर उसे अर्घ्य देकर ही मैं आज भोजन करूंगी।

साहूकार के बेटे अपनी बहन से बहुत प्रेम करते थे, उन्हें अपनी बहन का भूख से व्याकुल चेहरा देख बेहद दुख हुआ। साहूकार के बेटे नगर के बाहर चले गए और वहां एक पेड़ पर चढ़ कर अग्नि जला दी। घर वापस आकर उन्होंने अपनी बहन से कहा- देखो बहन, चांद निकल आया है। अब तुम उन्हें अर्घ्य देकर भोजन ग्रहण करो। साहूकार की बेटी ने अपनी भाभियों से कहा- देखो, चांद निकल आया है, तुम लोग भी अर्घ्य देकर भोजन कर लो। ननद की बात सुनकर भाभियों ने कहा- बहन अभी चांद नहीं निकला है, तुम्हारे भाई धोखे से अग्नि जलाकर उसके प्रकाश को चांद के रूप में तुम्हें दिखा रहे हैं।

साहूकार की बेटी अपनी भाभियों की बात को अनसुनी करते हुए भाइयों द्वारा दिखाए गए चांद को अर्घ्य देकर भोजन कर लिया। इस प्रकार करवा चौथ का व्रत भंग करने के कारण विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश साहूकार की लड़की पर अप्रसन्न हो गए। गणेश जी की अप्रसन्नता के कारण उस लड़की का पति बीमार पड़ गया और घर में बचा हुआ सारा धन उसकी बीमारी में लग गया।

साहूकार की बेटी को जब अपने किए हुए दोषों का पता लगा तो उसे बहुत पश्चाताप हुआ। उसने गणेश जी से क्षमा प्रार्थना की और फिर से विधि-विधान पूर्वक चतुर्थी का व्रत शुरू कर दिया। उसने उपस्थित सभी लोगों का श्रद्धानुसार आदर किया और तदुपरांत उनसे आशीर्वाद ग्रहण किया।

इस प्रकार उस लड़की के श्रद्धा-भक्ति को देखकर एकदंत भगवान गणेश जी उसपर प्रसन्न हो गए और उसके पति को जीवनदान प्रदान किया। उसे सभी प्रकार के रोगों से मुक्त करके धन, संपत्ति और वैभव से युक्त कर दिया।

करवा चौथ व्रत कथा: द्रौपदी को श्री कृष्ण ने सुनाई कथा! (Karwa Chauth Vrat Katha 2)
करवा चौथ व्रत कथा: द्रौपदी को श्री कृष्ण ने सुनाई कथा! (Karwa Chauth Vrat Katha 2)
द्रौपदी को श्री कृष्ण ने सुनाई शिव-पार्वती कथा:
एक बार अर्जुन नीलगिरि पर तपस्या करने गए। द्रौपदी ने सोचा कि यहाँ हर समय अनेक प्रकार की विघ्न-बाधाएं आती रहती हैं। उनके शमन के लिए अर्जुन तो यहाँ हैं नहीं, अत: कोई उपाय करना चाहिए। यह सोचकर उन्होंने भगवान श्री कृष्ण का ध्यान किया।

भगवान वहाँ उपस्थित हुए तो द्रौपदी ने अपने कष्टों के निवारण हेतु कोई उपाय बताने को कहा। इस पर श्रीकृष्ण बोले- एक बार पार्वती जी ने भी शिव जी से यही प्रश्न किया था तो उन्होंने कहा था कि करवाचौथ का व्रत गृहस्थी में आने वाली छोटी- मोटी विघ्न-बाधाओं को दूर करने वाला है। यह पित्त प्रकोप को भी दूर करता है। फिर श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को एक कथा सुनाई:

प्राचीनकाल में एक धर्मपरायण ब्राह्मण के सात पुत्र तथा एक पुत्री थी। बड़ी होने पर पुत्री का विवाह कर दिया गया। कार्तिक की चतुर्थी को कन्या ने करवा चौथ का व्रत रखा। सात भाइयों की लाड़ली बहन को चंद्रोदय से पहले ही भूख सताने लगी। उसका फूल सा चेहरा मुरझा गया। भाइयों के लिए बहन की यह वेदना असहनीय थी। अत: वे कुछ उपाय सोचने लगे।

उन्होंने बहन से चंद्रोदय से पहले ही भोजन करने को कहा, पर बहन न मानी। तब भाइयों ने स्नेहवश पीपल के वृक्ष की आड़ में प्रकाश करके कहा- देखो ! चंद्रोदय हो गया। उठो, अर्ध्य देकर भोजन करो।’ बहन उठी और चंद्रमा को अर्ध्य देकर भोजन कर लिया। भोजन करते ही उसका पति मर गया। वह रोने चिल्लाने लगी। दैवयोग से इन्द्राणी देवदासियों के साथ वहाँ से जा रही थीं। रोने की आवाज़ सुन वे वहाँ गईं और उससे रोने का कारण पूछा।

ब्राह्मण कन्या ने सब हाल कह सुनाया। तब इन्द्राणी ने कहा- ‘तुमने करवा चौथ के व्रत में चंद्रोदय से पूर्व ही अन्न-जल ग्रहण कर लिया, इसी से तुम्हारे पति की मृत्यु हुई है। अब यदि तुम मृत पति की सेवा करती हुई बारह महीनों तक प्रत्येक चौथ को यथाविधि व्रत करो, फिर करवा चौथ को विधिवत गौरी, शिव, गणेश, कार्तिकेय सहित चंद्रमा का पूजन करो और चंद्र उदय के बाद अर्ध्य देकर अन्न-जल ग्रहण करो तो तुम्हारे पति अवश्य जीवित हो उठेंगे।’

ब्राह्मण कन्या ने अगले वर्ष 12 माह की चौथ सहित विधिपूर्वक करवा चौथ का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उनका मृत पति जीवित हो गया। इस प्रकार यह कथा कहकर श्रीकृष्ण द्रौपदी से बोले- ‘यदि तुम भी श्रद्धा एवं विधिपूर्वक इस व्रत को करो तो तुम्हारे सारे दुख दूर हो जाएंगे और सुख-सौभाग्य, धन-धान्य में वृद्धि होगी।’ फिर द्रौपदी ने श्रीकृष्ण के कथनानुसार करवा चौथ का व्रत रखा। उस व्रत के प्रभाव से महाभारत के युद्ध में कौरवों की हार तथा पाण्डवों की जीत हुई।

करवा चौथ व्रत कथा: पतिव्रता करवा धोबिन की कथा! (Karwa Chauth Vrat Katha 3)
करवा चौथ व्रत कथा: पतिव्रता करवा धोबिन की कथा! (Karwa Chauth Vrat Katha 3)
पतिव्रता करवा धोबिन की कथा:
पुराणों के अनुसार करवा नाम की एक पतिव्रता धोबिन अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित गांव में रहती थी। उसका पति बूढ़ा और निर्बल था। एक दिन जब वह नदी के किनारे कपड़े धो रहा था तभी अचानक एक मगरमच्छ वहां आया, और धोबी के पैर अपने दांतों में दबाकर यमलोक की ओर ले जाने लगा। वृद्ध पति यह देख घबराया और जब उससे कुछ कहते नहीं बना तो वह करवा..! करवा..! कहकर अपनी पत्नी को पुकारने लगा।

पति की पुकार सुनकर धोबिन करवा वहां पहुंची, तो मगरमच्छ उसके पति को यमलोक पहुंचाने ही वाला था। तब करवा ने मगर को कच्चे धागे से बांध दिया और मगरमच्छ को लेकर यमराज के द्वार पहुंची।

उसने यमराज से अपने पति की रक्षा करने की गुहार लगाई और बोली- हे भगवन्! मगरमच्छ ने मेरे पति के पैर पकड़ लिए है। आप मगरमच्छ को इस अपराध के दंड-स्वरूप नरक भेज दें।

करवा की पुकार सुन यमराज ने कहा- अभी मगर की आयु शेष है, मैं उसे अभी यमलोक नहीं भेज सकता। इस पर करवा ने कहा- अगर आपने मेरे पति को बचाने में मेरी सहायता नहीं कि तो मैं आपको श्राप दूंगी और नष्ट कर दूंगी।

करवा का साहस देख यमराज भी डर गए और मगर को यमपुरी भेज दिया। साथ ही करवा के पति को दीर्घायु होने का वरदान दिया।

तब से कार्तिक कृष्ण की चतुर्थी को करवा चौथ व्रत का प्रचलन में आया। जिसे इस आधुनिक युग में भी महिलाएं अपने पूरी भक्ति भाव के साथ करती है और भगवान से अपनी पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं।

यह भी जानें:
आरती: श्री गणेश जी
आरती: ॐ जय जगदीश हरे!
आरती: जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी

Translated Version

Lyrics In English


Saahookaar ke saat ladake, ek ladakee kee kahaaneeah
ek saahookaar ke saat ladake aur ek ladakee thee. Ek baar kaartik maas kee kriṣṇa pakṣ kee chaturthee tithi ko seṭhaanee sahit usakee saaton bahuen aur usakee beṭee ne bhee karavaa chauth kaa vrat rakhaa. Raatri ke samay jab saahookaar ke sabhee ladake bhojan karane baiṭhe to unhonne apanee bahan se bhee bhojan kar lene ko kahaa. Is par bahan ne kahaa- bhaa_ii, abhee chaand naheen nikalaa hai. Chaand ke nikalane par use arghy dekar hee main aaj bhojan karoongee. Saahookaar ke beṭe apanee bahan se bahut prem karate the, unhen apanee bahan kaa bhookh se vyaakul cheharaa dekh behad dukh huaa. Saahookaar ke beṭe nagar ke baahar chale ga_e aur vahaan ek ped par chaḍh kar agni jalaa dee. Ghar vaapas aakar unhonne apanee bahan se kahaa- dekho bahan, chaand nikal aayaa hai. Ab tum unhen arghy dekar bhojan grahaṇa karo. Saahookaar kee beṭee ne apanee bhaabhiyon se kahaa- dekho, chaand nikal aayaa hai, tum log bhee arghy dekar bhojan kar lo. Nanad kee baat sunakar bhaabhiyon ne kahaa- bahan abhee chaand naheen nikalaa hai, tumhaare bhaa_ii dhokhe se agni jalaakar usake prakaash ko chaand ke roop men tumhen dikhaa rahe hain. Saahookaar kee beṭee apanee bhaabhiyon kee baat ko anasunee karate hue bhaa_iyon dvaaraa dikhaa_e ga_e chaand ko arghy dekar bhojan kar liyaa. Is prakaar karavaa chauth kaa vrat bhng karane ke kaaraṇa vighnahartaa bhagavaan shree gaṇaesh saahookaar kee ladakee par aprasann ho ga_e. Gaṇaesh jee kee aprasannataa ke kaaraṇa us ladakee kaa pati beemaar pad gayaa aur ghar men bachaa huaa saaraa dhan usakee beemaaree men lag gayaa. Saahookaar kee beṭee ko jab apane kie hue doṣon kaa pataa lagaa to use bahut pashchaataap huaa. Usane gaṇaesh jee se kṣamaa praarthanaa kee aur fir se vidhi-vidhaan poorvak chaturthee kaa vrat shuroo kar diyaa. Usane upasthit sabhee logon kaa shraddhaanusaar aadar kiyaa aur taduparaant unase aasheervaad grahaṇa kiyaa. Is prakaar us ladakee ke shraddhaa-bhakti ko dekhakar ekadnt bhagavaan gaṇaesh jee usapar prasann ho ga_e aur usake pati ko jeevanadaan pradaan kiyaa. Use sabhee prakaar ke rogon se mukt karake dhan, snpatti aur vaibhav se yukt kar diyaa. Karavaa chauth vrat kathaah draupadee ko shree kriṣṇa ne sunaa_ii kathaa! (karwa chauth rat katha 2)
karavaa chauth vrat kathaah draupadee ko shree kriṣṇa ne sunaa_ii kathaa! (karwa chauth rat katha 2)
draupadee ko shree kriṣṇa ne sunaa_ii shiv-paarvatee kathaah
ek baar arjun neelagiri par tapasyaa karane ga_e. Draupadee ne sochaa ki yahaan har samay anek prakaar kee vighn-baadhaa_en aatee rahatee hain. Unake shaman ke lie arjun to yahaan hain naheen, atah koii upaay karanaa chaahie. Yah sochakar unhonne bhagavaan shree kriṣṇa kaa dhyaan kiyaa. Bhagavaan vahaan upasthit hue to draupadee ne apane kaṣṭon ke nivaaraṇa hetu koii upaay bataane ko kahaa. Is par shreekriṣṇa bole- ek baar paarvatee jee ne bhee shiv jee se yahee prashn kiyaa thaa to unhonne kahaa thaa ki karavaachauth kaa vrat grihasthee men aane vaalee chhoṭee- moṭee vighn-baadhaa_on ko door karane vaalaa hai. Yah pitt prakop ko bhee door karataa hai. Fir shreekriṣṇa ne draupadee ko ek kathaa sunaa_iiah


praacheenakaal men ek dharmaparaayaṇa braahmaṇa ke saat putr tathaa ek putree thee. Badee hone par putree kaa vivaah kar diyaa gayaa. Kaartik kee chaturthee ko kanyaa ne karavaa chauth kaa vrat rakhaa. Saat bhaa_iyon kee laadlee bahan ko chndroday se pahale hee bhookh sataane lagee. Usakaa fool saa cheharaa murajhaa gayaa. Bhaa_iyon ke lie bahan kee yah vedanaa asahaneey thee. Atah ve kuchh upaay sochane lage. Unhonne bahan se chndroday se pahale hee bhojan karane ko kahaa, par bahan n maanee. Tab bhaa_iyon ne snehavash peepal ke vrikṣ kee aad men prakaash karake kahaa- dekho ! Chndroday ho gayaa. Uṭho, ardhy dekar bhojan karo.’ bahan uṭhee aur chndramaa ko ardhy dekar bhojan kar liyaa. Bhojan karate hee usakaa pati mar gayaa. Vah rone chillaane lagee. Daivayog se indraaṇaee devadaasiyon ke saath vahaan se jaa rahee theen. Rone kee aavaaza sun ve vahaan ga_iin aur usase rone kaa kaaraṇa poochhaa. Braahmaṇa kanyaa ne sab haal kah sunaayaa. Tab indraaṇaee ne kahaa- ‘tumane karavaa chauth ke vrat men chndroday se poorv hee ann-jal grahaṇa kar liyaa, isee se tumhaare pati kee mrityu huii hai. Ab yadi tum mrit pati kee sevaa karatee huii baarah maheenon tak pratyek chauth ko yathaavidhi vrat karo, fir karavaa chauth ko vidhivat gauree, shiv, gaṇaesh, kaartikey sahit chndramaa kaa poojan karo aur chndr uday ke baad ardhy dekar ann-jal grahaṇa karo to tumhaare pati avashy jeevit ho uṭhenge.’


braahmaṇa kanyaa ne agale varṣ 12 maah kee chauth sahit vidhipoorvak karavaa chauth kaa vrat kiyaa. Vrat ke prabhaav se unakaa mrit pati jeevit ho gayaa. Is prakaar yah kathaa kahakar shreekriṣṇa draupadee se bole- ‘yadi tum bhee shraddhaa evn vidhipoorvak is vrat ko karo to tumhaare saare dukh door ho jaa_enge aur sukh-saubhaagy, dhan-dhaany men vriddhi hogee.’ fir draupadee ne shreekriṣṇa ke kathanaanusaar karavaa chauth kaa vrat rakhaa. Us vrat ke prabhaav se mahaabhaarat ke yuddh men kauravon kee haar tathaa paaṇaḍaavon kee jeet huii. Karavaa chauth vrat kathaah pativrataa karavaa dhobin kee kathaa! (karwa chauth rat katha 3)
karavaa chauth vrat kathaah pativrataa karavaa dhobin kee kathaa! (karwa chauth rat katha 3)
pativrataa karavaa dhobin kee kathaah
puraaṇaon ke anusaar karavaa naam kee ek pativrataa dhobin apane pati ke saath tungabhadraa nadee ke kinaare sthit gaanv men rahatee thee. Usakaa pati booḍhxaa aur nirbal thaa. Ek din jab vah nadee ke kinaare kapade dho rahaa thaa tabhee achaanak ek magaramachchh vahaan aayaa, aur dhobee ke pair apane daanton men dabaakar yamalok kee or le jaane lagaa. Vriddh pati yah dekh ghabaraayaa aur jab usase kuchh kahate naheen banaa to vah karavaa..! Karavaa..! Kahakar apanee patnee ko pukaarane lagaa. Pati kee pukaar sunakar dhobin karavaa vahaan pahunchee, to magaramachchh usake pati ko yamalok pahunchaane hee vaalaa thaa. Tab karavaa ne magar ko kachche dhaage se baandh diyaa aur magaramachchh ko lekar yamaraaj ke dvaar pahunchee. Usane yamaraaj se apane pati kee rakṣaa karane kee guhaar lagaa_ii aur bolee- he bhagavan! Magaramachchh ne mere pati ke pair pakad lie hai. Aap magaramachchh ko is aparaadh ke dnḍa-svaroop narak bhej den. Karavaa kee pukaar sun yamaraaj ne kahaa- abhee magar kee aayu sheṣ hai, main use abhee yamalok naheen bhej sakataa. Is par karavaa ne kahaa- agar aapane mere pati ko bachaane men meree sahaayataa naheen ki to main aapako shraap doongee aur naṣṭ kar doongee. Karavaa kaa saahas dekh yamaraaj bhee ḍaar ga_e aur magar ko yamapuree bhej diyaa. Saath hee karavaa ke pati ko deerghaayu hone kaa varadaan diyaa. Tab se kaartik kriṣṇa kee chaturthee ko karavaa chauth vrat kaa prachalan men aayaa. Jise is aadhunik yug men bhee mahilaa_en apane pooree bhakti bhaav ke saath karatee hai aur bhagavaan se apanee pati kee lnbee umr kee kaamanaa karatee hain. Yah bhee jaanenah
aarateeah shree gaṇaesh jee
aarateeah om jay jagadeesh hare! Aarateeah jay ambe gauree, maiyaa jay shyaamaa gauree


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Song Credits & Copyright Details:


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